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MADHUNISHA SAMWAAD : PART-III
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मधुनिशा-रति संवाद - भाग III
(PREMONMAYEE SAEAS RATI SARITA-157)
___________________________________________
[b](चौदह)
_________________________
देर रात तक रही सुलग भडकी थी जो चिंगारी
रही धधक उठ बैठा वह मनमारे मैं मनमारी
आह हुआ क्या यह सोचे री जी रह आया धडका
सुने बोल तमतमा रहा मन-मन वह खीझा भड़का
उसने चौंके औचक सना लंड बुर बीच निकाला
मिटी न भूख चुदन की यूं छूटा अधबीच निवाला
उठ आए मजबूर आँख मिल केवल कह रह आई
जानम बुझी न आग छिड़ेगी कस फिर रात लड़ाई
‘चप-चप’ चूमे चूत उठा री मनमारे वह भारी
कहा “चतुर तुम बहुत सताया तुमने मुझको प्यारी”
चिमट थपथपा गाल कहा उसने “अब मेरी बारी
रात आज बदला लूँ मैं ठुकने रखना तैयारी”
मुस्काई हौले बोली मैं “जो तुम कहो करूंगी
जितना लोगे बदला उतना प्यार तुम्हें मैं दूंगी”
सुन बातें रसभरी प्यार की री मैं थी मदमाती
किये याद मन गुदगुद अब भी बुर है उछली जाती”
आह भरे तन तोड़ गज़ब दुलहन सखि रह अंगडाई
निकल चुभीं चूचियाँ गज़ब छाती गुलगुल तन आई
“ऊह याद कर भिडन रात की” बोली “जिया मचलता
हर पल नया स्वाद ले मौसम बुर का रहा बदलता
रही मज़े की रात लंड संग खेल चूत ने जाना
क्या सुख मिले चुदाई में क्या होता है चुदवाना
सुना बयाँ जितना था पहले उससे ज़्यादा पाया
लब्ज़ न कहने को री जो उन लम्हों में हो आया
उठी छलछला कीच मचा बुर लंड थिरकता बरसा
उठा हरस ले मन उसको पाने जिसको था तरसा
‘ऊह ऊह’ मत पूछ हाय री “आह, मज़ा जो आया
कहने की वह बात नहीं जाने जिसने वह पाया “
(पन्द्रह)
(चुदाई कथा से सखी की बुर का उबाल)
__________________________________
इक-इक बात बयाँ कर मचली दुलहन हांफी आई
कह अब कैसा लगा हाय पूछे सखि गर लपटाई
बोली सुनी बात तूने कुछ कह गर रही अधूरी
हो न शिकायत तुझे कसर कर दूँ वह भी मैं पूरी
चिपक तान तन तोड़ सखी का बदन लहराता आया
सुन बरनन बेहाल हुआ मन चुदने-चुदने आया
ताब न देखा झपट मसक सखि यह उसपर चढ़ आई
बोली चुदी खूब तू सुन बुर आग इधर लग आई
आह सखी बुर चूमूं तेरी क्या किसमत है पाई
उबली जाती चूत इधर सुन तेरी गज़ब चुदाई
कसी चिपक छातियाँ मसल चढ़ ज्वार बदन पर छाया
भिड़ी चूत से चूत ‘थपा-थप’ समां खूब बंध आया
(सोलह)
(सखियों में प्यार की भिडंत और बिदाई)
_________________________________
इक-दूजी को लिये झटकती मिल-मिल चमकी आँखें
फुरक-फुरकती बहीं मगन खुल उड़ी पसारे पांखें
कसी भुजाएं थाप हथेली फाँस झटकतीं तगड़ा
उलझ फाड़ टांगें चढ़ फिसलीं बुर ने धर बुर रगडा
अलट-पलट करवट-करवट बुर ने ठोका बुर कस-कस
अघा बहीं चूतें जांघों तक सिसियायीं “उइ री बस”
बोली दुलहन “चूत बही री साली क्या कर डाला
आखिर रगड़ चोद बुर मुझसे तूने कसार निकाला”
मुसका उत्तर में बोली सखि “बस इतने से हारी
आह मान ले बात चुदें चल संग उसे ले प्यारी
पक्की कर लें आज मिताई चल हम–तुम मिल प्यारी
साझा करती लंड लिये मिल खाएं बारी-बारी
जब चोदे ले तुझे ‘घपाघप’ तके मगन मैं देखूँ
तू देखे फड़वाती बुर जब मैं उसका लौड़ा लूँ
एक निहारे बैठ मगन दूजी चुदती रह आये
ऊह सोच प्यारी तब कैसा मज़ा देखते आये
परे धकेल चिकोट गाल दुलहन सखि कह मुसकायी
“हा री बहुत चतुर साली तू लंड बंटाने आयी
ज़रा ठहर आने दे मौक़ा फिर मैं बदला लूंगी
बैठ देखना तू तेरे उससे मैं चुदवाऊंगी
साली तेरी यही सजा तू नहीं सुधर पाएगी
किये ठिठोली तू बिंदास रही हरदम आएगी
देखूँ आती कब तेरी बारी मत मुझे भुलाना
लंड लिये गुज़री क्या तुझपर बिन-भूली बतलाना
मिल-मिल गले प्रेम से भर-भर आहें हुई विदाई
सखि संवाद मधु-निशा वर्णन की इति यूं हो आई
रसिकाओं रस-रसिक कहो वर्णन यह कैसा भाया
आगे और लिखूं हवाल जो मजा तुम्हें हो आया
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मधुनिशा-रति संवाद - भाग III
(PREMONMAYEE SAEAS RATI SARITA-157)
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[b](चौदह)
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देर रात तक रही सुलग भडकी थी जो चिंगारी
रही धधक उठ बैठा वह मनमारे मैं मनमारी
आह हुआ क्या यह सोचे री जी रह आया धडका
सुने बोल तमतमा रहा मन-मन वह खीझा भड़का
उसने चौंके औचक सना लंड बुर बीच निकाला
मिटी न भूख चुदन की यूं छूटा अधबीच निवाला
उठ आए मजबूर आँख मिल केवल कह रह आई
जानम बुझी न आग छिड़ेगी कस फिर रात लड़ाई
‘चप-चप’ चूमे चूत उठा री मनमारे वह भारी
कहा “चतुर तुम बहुत सताया तुमने मुझको प्यारी”
चिमट थपथपा गाल कहा उसने “अब मेरी बारी
रात आज बदला लूँ मैं ठुकने रखना तैयारी”
मुस्काई हौले बोली मैं “जो तुम कहो करूंगी
जितना लोगे बदला उतना प्यार तुम्हें मैं दूंगी”
सुन बातें रसभरी प्यार की री मैं थी मदमाती
किये याद मन गुदगुद अब भी बुर है उछली जाती”
आह भरे तन तोड़ गज़ब दुलहन सखि रह अंगडाई
निकल चुभीं चूचियाँ गज़ब छाती गुलगुल तन आई
“ऊह याद कर भिडन रात की” बोली “जिया मचलता
हर पल नया स्वाद ले मौसम बुर का रहा बदलता
रही मज़े की रात लंड संग खेल चूत ने जाना
क्या सुख मिले चुदाई में क्या होता है चुदवाना
सुना बयाँ जितना था पहले उससे ज़्यादा पाया
लब्ज़ न कहने को री जो उन लम्हों में हो आया
उठी छलछला कीच मचा बुर लंड थिरकता बरसा
उठा हरस ले मन उसको पाने जिसको था तरसा
‘ऊह ऊह’ मत पूछ हाय री “आह, मज़ा जो आया
कहने की वह बात नहीं जाने जिसने वह पाया “
(पन्द्रह)
(चुदाई कथा से सखी की बुर का उबाल)
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इक-इक बात बयाँ कर मचली दुलहन हांफी आई
कह अब कैसा लगा हाय पूछे सखि गर लपटाई
बोली सुनी बात तूने कुछ कह गर रही अधूरी
हो न शिकायत तुझे कसर कर दूँ वह भी मैं पूरी
चिपक तान तन तोड़ सखी का बदन लहराता आया
सुन बरनन बेहाल हुआ मन चुदने-चुदने आया
ताब न देखा झपट मसक सखि यह उसपर चढ़ आई
बोली चुदी खूब तू सुन बुर आग इधर लग आई
आह सखी बुर चूमूं तेरी क्या किसमत है पाई
उबली जाती चूत इधर सुन तेरी गज़ब चुदाई
कसी चिपक छातियाँ मसल चढ़ ज्वार बदन पर छाया
भिड़ी चूत से चूत ‘थपा-थप’ समां खूब बंध आया
(सोलह)
(सखियों में प्यार की भिडंत और बिदाई)
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इक-दूजी को लिये झटकती मिल-मिल चमकी आँखें
फुरक-फुरकती बहीं मगन खुल उड़ी पसारे पांखें
कसी भुजाएं थाप हथेली फाँस झटकतीं तगड़ा
उलझ फाड़ टांगें चढ़ फिसलीं बुर ने धर बुर रगडा
अलट-पलट करवट-करवट बुर ने ठोका बुर कस-कस
अघा बहीं चूतें जांघों तक सिसियायीं “उइ री बस”
बोली दुलहन “चूत बही री साली क्या कर डाला
आखिर रगड़ चोद बुर मुझसे तूने कसार निकाला”
मुसका उत्तर में बोली सखि “बस इतने से हारी
आह मान ले बात चुदें चल संग उसे ले प्यारी
पक्की कर लें आज मिताई चल हम–तुम मिल प्यारी
साझा करती लंड लिये मिल खाएं बारी-बारी
जब चोदे ले तुझे ‘घपाघप’ तके मगन मैं देखूँ
तू देखे फड़वाती बुर जब मैं उसका लौड़ा लूँ
एक निहारे बैठ मगन दूजी चुदती रह आये
ऊह सोच प्यारी तब कैसा मज़ा देखते आये
परे धकेल चिकोट गाल दुलहन सखि कह मुसकायी
“हा री बहुत चतुर साली तू लंड बंटाने आयी
ज़रा ठहर आने दे मौक़ा फिर मैं बदला लूंगी
बैठ देखना तू तेरे उससे मैं चुदवाऊंगी
साली तेरी यही सजा तू नहीं सुधर पाएगी
किये ठिठोली तू बिंदास रही हरदम आएगी
देखूँ आती कब तेरी बारी मत मुझे भुलाना
लंड लिये गुज़री क्या तुझपर बिन-भूली बतलाना
मिल-मिल गले प्रेम से भर-भर आहें हुई विदाई
सखि संवाद मधु-निशा वर्णन की इति यूं हो आई
रसिकाओं रस-रसिक कहो वर्णन यह कैसा भाया
आगे और लिखूं हवाल जो मजा तुम्हें हो आया
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