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Nakh Shikh Ang Gulabi Chhaee xxxxt Gulabi Lali

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नख शिख अंग गुलाबी छाई xxxxt गुलाबी लाली
(premonmayee saras rati sarita - 267)
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नख शिख अंग गुलाबी छाई चूत गुलाबी लाली
लोच लहरती बदन थिरकती जोबन मद की प्याली
मुखड़ा मनहर हरिणी सी चितवनि तक रही लुभाई
चूत सुहानी खड़ा लंड कर घायल कर कर आई  

सानी बुर का नहीं चुद मगन साने रस सुख देती
सिमट पंखुरियाँ चुदी ‘लपालप’ कसे लंड को लेती
मक्खन कोमल बुर चिकनी ले लंड गदागद खेले
झीनी पांत सिराएं ‘लचलच’ हौले रखता पेले

खेले जी न अघाए जोड़ी रखती गज़ब बनाए
किये प्यार से वार उफनती रगड़ लंड नहलाए
लेती लंड प्यार में खींची रखे कमर अटकाए
उठ उठ चूमे “आह और दे प्यारे” कह कह आए

मन प्रमुदित अधीर बलिहारी बुर पर मिट मिट आता
“आह जादुई छुअन हाय री बुर” गुनगुन रह गाता
अंग-अंग डोर लता कोमल गुंथ बदन बंधा रह आता
दे हिचकोले ले हिलोर बुर-संग लंड झूला जाता  

रह रह पींगे उठीं गज़ब तन अधर उछाले जातीं
गिरे पटकता चूत लंड बुर उमग लपक धर आती
चूत ख्वाब सी प्यारी सुन्दर जबरा लंड निराला
चुद चुद आह निकलती बुर “आहा रे क्या कर डाला”

मगन चुदी बुर उधर लंड कह मारे ‘सट-सट’ भारी
“फाड़ रस भरूं चूत लबालब आज न छोडूं प्यारी”

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Written by premonmayee
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