deepundergroundpoetry.com
Namakeen Taambaee chharharee tanvangee : wah suranginee (Part-2)
नमकीन तांबई छरहरी काया : वह सुरंगिनी (Part-2)
________________________________________
(घटनाएं और पात्र महज काल्पनिक फंतासी से रचित हैं.इनका किन्ही जीवित या अजीवित से कोई लेना देना नहीं है)
_________________________________________________________________
मेरा मन तो कर रहा था कि सरोज की गुलाबी नरम चूत मै फ़ौरन अपने भूखे लौड़े को पेलकर चोद डालूं लेकिन उसकी जोरदार छातियों को कसकर झिंझोड़ते हुए नकली गुस्से से मैने कहा- साली सरोज तू फौरन जा. पहले तेल लेकर आ और अपनी मालकिन सखी को राहत दे. फिर तू देखना कि कैसा मज़ा चखाता हूं तुझे बाद में."
सरोज समझ गई थी कि मजा चखाने का क्या मतलब था. स्वाति की आंख से बचने वह यूं झुकी जैसे वह स्वाति की दुखती चूत का मुआयना कर रही है फिर सिर को पलटाकर गप्प से मेरे लौड़े को होठों मे निगलने के बाद लौड़े को मुठ्ठी से हिलाकर वह बिस्तर छोड़कर आगे बढ़ी - "लाती हूं तेल मैं, लेकिन याद रखना कि मैं भी हूं."
" जा न साली. तेरे ही कहने पर तो आज मैं गलती कर बैठी."-स्वाति चिल्लाई.
सरोज बादाम के तेल की शीशी उठा लई थी.
" दीदी, जरा लेटो ना तब तो" -वह बोली.
स्वाति के लेटते-लेटते ही चमकती आंखों से मेरी तरफ़ देखा और आंख मार दी.
"दीदी घुटने तो मोड़ो जरा" स्वाति से सरोज बोली.
स्वाति ने जैसे ही घुटने मोड़े थे कि उसकी खूबसूरत पतली टांगों के बीच से जगह बनाता मेरा लौड़ा फिर उसकी चूत पर पिल पड़ा.
" फिर चालाकी ..? नहीं प्लीज़"- कहती स्वाति ने घुटनों को सटाकर जांघों को सिकोड़ना चाहा.इस बार सरोज ने साथ दिया. वह स्वाति की मुलायम और मझोली छातियों पर बिछ गई और उसके गालों पर गाल टिकाती बोली - ना मेरी रानी.. अच्छे बच्चे मान जाते हैं.तेरी किस्मत कि इतना अच्छा लौड़ा मिल रहा है मेरी रानी. अब नखरा मत कर. बोल, नहीं तो मै तेरे प्यारे के लन्ड को छीनकर अभी तेरे सामने ही अपनी चूत की तिजोरी में डालकर रख लूं."
सरोज के मनाते-मनाते स्वाति की बारीक फांक में मेरे लौड़े का मुंड फिर धंस चला. तेल से मुहाने में तो चिकनाई आ गई थी ,लेकिन आगे फिर घाटी इतनी संकरी थी कि लौड़ा फंस रहा था.मुन्डी की गांठ के धक्के से फिर स्वाति सिसकियां भर रही थी -" हाय.., अब कैसे होगा रे. मै डरती हूं कि कैसे संभलूंगी."
मैने झुकी हुई सरोज की छाती के एक स्तन को थामा और उसके पुट्ठे पर चिकोटी काटी. वह समझ गई थी.उसने मेरे लौड़े और स्वाति की चूत के ढक्कन यानी घुंघराली मुलायम झांटों के बीच के ओठों को अपनी उंगली से फैलाते तेल की पतली धार से चूत और लौड़े खूब नहला दिया. मैने अपनी उंगलियों में लौड़े की गांठ को थाम हौले-हौले स्वाति की चूत की सुरंग के मुहाने की सैर कराई और फिर अपने पुट्ठे ऊपर उठाते जोर की ठोकर मार घप्प से एक बार मे ही पूरी लम्बाई में लौड़े को ऐसा पेला कि स्वाति की चूत उसे -"आह मर गई रे मार डाला" कहती निगल गई.
इस बार स्वाति पर रिएक्शन यह हुआ कि मुझसे मुझे हटाने की जगह वह नाजुक लता की तरह और कसकर मुझसे लिपटकर जकझोरने लगी.
हमने सरोज को इशारा किया कि वह अब चली जाए, लेकिन वह -"देखने दो प्लीज़" कहती खड़ी रही.
स्वाति को बाहों मे लिपटाये चूमते मैने उसकी चुदाई शुरू कर दी. शुरू-शुरू में लौड़ा इतनी नजाकत के साथ पूरे का पूरा इस तरह हौले-हौले बाहर आकर चूत को अंदर तक ठेलता रहा कि हर स्ट्रोक की गुदगुदी के साथ एक-दूसरे की आंखों में झांकते, होठों से होंठों को निगलते हम दोनों एक- दूसरे से-
" आह कितना अच्छा लग रहा है",...."और ये लो",..."और दो",... "आह प्यारे तुम कितने अच्छे हो",..".मेरी प्यारी स्वाती तुम्हरी चूत का जवाब नहीं,"...."आह तुम्हारी हिरनी जैसी आंखें ..इन्हें जी भर देखने दो रानी"..."आह मेरे प्यारे आज चूस डालो मुझको"...."अब छोड़ो मत राजा..चोदते रहो..चोदते रहो". कहते चुदाई के एक-एक पल के साथ स्वर्ग की सैर करते रहे.
कभी स्वाति मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में थामकर प्यार से चूमती जाती,.. कभी मेरी हथेलियों मे उंगलियों से उंगलियां फंसाये प्यार में पंजे लड़ाती,..कभी मेरी आंखों, माथे या कानों को होठों में लपक लेती और कभी कसकर मेरे चेहरे को अपने कपोलों से चिपटाकर जकड़ लेती.
मैने भी बीच-बीच में स्वाति की चूत के रस मे नहाए अपने लंड को बाहर निकालकर बड़े प्यार से एक-एक करके उसके तने हुए स्तनों की,उनपर सजे भूरे-भूरे अंगूरों की,खूबसूरत काली आंखों और पलकों की, माथे और उसपर खेलती जुल्फ़ों की,धारदार पतली नाक और रसीले ओठों की, कमर की संकरी घाटी और उसके बीच खुदी नन्ही बावली की, पतले-पतले हाथों, कलाइयों और बाहों की, च्किनी जांघों और लम्बी टांगों की सैर कराई. हर स्पाट पर कभी मुट्ठी में जकड़कर चाटते हुए और कभी प्यार से उंगलियों को फिराते हुए, और कभी होठों से चूम-चूम कर बड़ी दीवानगी के साथ सारे अंगों से वह अप्नने प्यारे दोस्त को इन्ट्रोड्यूस कराती रही.जब चूत रानी बौखलाकर आवाज देने लगती तो "राजा चलो अब अंदर ना प्लीज़.वो अकेली तरस रही है" कहती अपने प्यारे लंड यार को स्वाति फिर से उसकी चिकनी कलाई थामकर संकरी घाटी की सुरंग में ठेल देती थी .
एक किनारे लार टपकती नज़रों से बिस्तर को ताकती सरोज " हाय..हाय अब मैं कहां जाऊं.. इस अपनी प्यासी चूत का क्या कर डालूं.."कहती छातियों को मसलती भूरी झांटों में रिसती चूत को अपनी उंगलियों से कुरेद रही थी.मेरा दिल आवाज दे-दे कर मुझे पुकारती सरोज की रिसी जा रही चूत पर पसीजा पड़ रहा था.जी करता था कि सुपरफ़ास्ट की स्पीड से स्वाति की सुरंग में पिस्टन की तरह धंसकर तेज रफ़्तार से भागते लौड़े पर ब्रेक दूं और सरोज की भाफ छोड़ती तैयार इंजन पर चढ़ बैठूं पर वह मुमकिन नहीं था क्यों कि स्वाति जल्दी से जल्दी अपने मुकाम पर पहुंचने के मूड में आ गई थी. उसके नितंब नीचे से ऊपर उछल-उछल कर लम्बू मियां को टक्कर दे रहे थे.
नसों में खून तेजी से दौड़ने लगा था और लगातार आगे बढ़ते लंबूजी के हर स्ट्रोक के साथ दिल की धड़कनें बढ़ रही थीं.ऊपर से मैं और नीचे से स्वाति दोनों ही एक दूसरे को धक्का देते जोरदार टक्कर में भिड़ रहे थे. दोनों की सांसें तेज हो रही थीं.सांसों की रफ़्तार के साथ-साथ मेर तन्नाया लौड़ा और स्वाति की भाफ़ छोड़ती गरमाई हुई चूत जोश में आ-आकर दीवानगी मे खूब तेजी के साथ "घपाघप-...चपाचप-...भकाभक-...छपाछप" की आवाज में न समेटी जा रही खुशी को उजागर किये जा रहे थे.
स्वाति और मेरे होठों पर यह जोश " आह मै कितनी खुश हूं मैं आज"......"मारो,मेरे राजा ठोंक डालो जमकर इसे"....."चोदो"....."चोदे जाओ"....."और जोर से"....."वाह क्या जोरदार स्ट्रोक है"..........."शाब्बास...आह"....."फाड़ डालो"......"हाय-आ...आय, रे"..."हाअ..य्य.ये. .....कितना प्यारा जोड़ा है हमारा"...."आह मेरे प्यारे.."...कितना जोरदार फ़िट है..एकदम टाइट"....."उड़ा डालो अपनी इस लाड़ली चूत के चिथड़े आज राजा"...."लो मेरी प्यारी सम्भालो इसे"..."लो और जोर से"...."वाह प्यारी चूतरानी.....कितनी कोमाल हो तुम" "रानी.....मेरे लौड़े को तुमने दीवाना बना डाला प्यारी"....."लो प्यारी...लीलती जाओ आज"..."शाब्बास, लो राजा,.. ये मेरी तरफ़ से लो अब..." की लगातार तेज होती आवाज़ में बदहवाश हो रहा था.
आखिर वो पल आया जब मेरा लौड़ा ऐसी तेजी से स्वाति की चूत पर टूटा कि हाथ से मेरे गुस्साये लौड़े को थामकर रोकती वह चीखने लगी..." बस करो....बस करो प्लीज़....रोको,..रोको ना, नहीं तो मै मर जाऊंगी...मर गई रे ...फाड़ डला आज तो....बस करो प्लीज़.." मेरी प्यारी श्यामा की नाजुक छरहरी देह लौड़े की चोट से बदहवाश होती लहरा-लहराकर हिल रही थी और मुझे रोकने वह उठ-उठकर बैठी पड़ रही थी.
ठीक इसी वक्त अपनी साड़ी-चोली एक तरफ फेंककर सरोज रानी भी झपटकर स्वाति और मुझपर सवार हो गई थी. कभी स्वाति और कभी मेरे बदन को चूमती जाती सरोज बड़बड़ाती हुई न जाने क्या-क्या बातें किये जा रही थी.
कभी स्वाति के कपोलों को थपथपाती उसपर अपने गाल सटाये वह बुदबुदाती-" हाय मेरी नाजुक छड़ी...चुद गई रे आज..."..." हाय-हाय कैसा कसकर चोदा है रे निरदयी ने...बिलकुल फाड़ डाला रे मेरी सांवली सखी की कोमल चूत को.."...." हाय मेरी छ्बीली...तूने तो चूत में तो कभी उंगली भी घुसने ना दी मेरी कली, आज इत्ता बड़ा लौड़ा कैसे निगला होगा मेरी बन्नो"...."हाय री स्वाती कैसा लगा रह होगा री तुझको भला आज की इस भयंकर चोदवाई मे."...."हाय-हाय,.. काश मै तेरी जगह चुदवा लेती री..तेरी चूत तो छितरा-छितरा डली रे आज इस जबरदस्त लौड़े ने"..."आह..आह मेरी सांवरी...काश चुदने से पहले मेरी चूत और तेरी चूत भी टकरा-टकरा कर गले मिल लेते मेरी सखी."... "हाय रानी,..अब तू उठ भर जा फिर मेरी चूत तेरी चूत को रगड़ेगी जरूर".. "मै तो तरस कर रह गई रे.."
सरोज वह सब कहती जाती और कभी अपनी शानदार छातियों को मेरी पीठ पर चिपका कर मसलती मुझसे कहती- " छोड़ दो..अब मेरी स्वाती को.. छोड़ दो मेरे राजा. उसकी नाजुक देह को छोड़ दो प्यारे. खूब मसल डाला रे मेरी नाजुक कली को...छोड़ दो ना अब छोड़ भी दो...जरा तो सोचो कि छोटी सी सूराख का तुम्हारे लंड ने क्या बुरा हाल कर दिया होगा.."
मैने स्वाति का कंधा अपने हाथों से कसकर दबा रखा था ताकि चुदाई की आखिरी चोटों से घबराकर वह कोई गड़बड़ न कर बैठे. प्यारी स्वाति की नाज़ुक टांगें मेरे कन्धे पर चढ़ी थीं. उसकी चूत की फांक खुल चली थी और रस से भीग रही थी फिर भी संकरी और टाइट थी. इस वक्त लौड़ा अच्छी दूरी तक पीछे जाता और फिर बाहर से पक्का निशाना साधकर स्वाति की चूत पर टूट्ता पूरी गहराई को माप रहा था.टक्कर ऐसी तूफानी चाल से हो रही थी कि चूत और लौड़े के साथ जांघों के अन्दरूनी पठार भी "चटाचट" और "छ्पाक-छपाक" की आवाज करते टकरा रहे थे. चूत की संकरी सुराख मे लंड के घुसते-निकलते "फ़ुक्क-फुक्क" की आवाज़ बनती और उसके साथ ही पठार टकराकर "चटाक-छपाक" करके चीखते थे.
उधर सरोज बड़बड़ा रही थी और अपनी "हाय-हाय" करती सखी को मुझसे अलग करने के चक्कर में थी और इधर उसकी ओर से बेखबार स्वाति और मै चुदवाते और चोदते हिमालय की चोटियों की तरफ बढ़ रहे थे.स्वाति और मेरी छातियों के बीच आड़ी होकर सरोज चित्त पड़ी थी. स्वाति की चूत "मार डाला रे" की धुन में चीखती हुई भी अपने को सिकोड़ती और फैलाती खूब मजे ले रही थी. स्वाति आहें भरती " चोदो राजा" ..."और जोर से आह".."फाड़ डालो आज मेरी चूत" कहती लौड़े के हर वार को लपक-लपक कर झेलती जा रही थी, लेकिन सरोज के चढ़ जाने से उसका चेहरा छिप गया था.मेरा झुका मुंह इसीलिये अब सरोज के चेहरे से चिपका होठों से भिड़ने लगा था. एक तरफ़ स्वाति की कड़क चूत थी तो दूसरी तरफ सरोज की गदराई छातियां और रसीले होठ थे. दोनों मिलकर मुझे दीवाना किये जा रहे थे.मेरे पांव का अंगूठा सरोज की खुली चूत से खेलने लगा था.
स्वाति बोल रही थी- "धीरे राजा...तुम्हारी चुदाई की जबरदस्त चोट से तो मेरी जान निकली जा रही है.."
"सह लो मेरी प्यारी छ्बीली.ऐसी प्यारी चोट के लिये फिर तुम तरस जाओगी और मै भी ऐसी प्यारी चूत कहं पाऊंगा"...."बस मेरी रानी,...मेरी प्यारी स्वाती...बस ये आखरी झटका" .."बस ये लो"...."लेती जाओ मेरी रानी.".."लो बस ये हो गया" कहता मेल ट्रेन की तेजी से"फकाफक...फकाफक" चोदता मैं उसे उस स्टेशन तक ले आया जहां बिजली की सनसनी से मेरा प्रचन्ड लौड़ा और स्वाति की रसीली चूत दोनों थरथराने लगे. दोनो के दोनो आपस में कसकर लिपटे हुए एक-एक कर बरसती फुहारों से नहा-नहा कर भीग गये. इन फुहारों के समय स्वाति और मैं आपस मे लिपटकर एक-देह और एक-प्राण हो गये थे. हम दोनों को पता नहीं चला कि हम उस वक्त कहां गुम हो गये थे.
बहुत देर तक हम तीनों आपस में चिपके हुए बेहोश पड़े रहे. जब अलग हुए तो सरोज स्वाति पर मेरे समने ही चढ़ बैठी और चूम-चूमकर उसे उसकी चुदाई की हिम्मत और स्टेमिना के लिये बधाई देने लगी.
सरोज ने मेरी तरफ नज़र फ़ेंकी और कहा कि "राजाजी, जाइयो मत अभी.अपना वादा याद करो. अब मेरी बारी है." स्वाति से वह बोली कि तुम बुरा मत मानन मेरी रानी. चुदवाने मे जितना मजा है उससे कम मजा इसके देखने में नहीं है.
स्वाति ने शर्त रखी कि प्यारे, इसका दिल मत तोड़ो, लेकिन आज दिन और रात अब आप को यहीं रहना है. मेरी चूत की प्यास आप ने भड़का दी है. चूत फट ही गई तो डर कैसा. देखूं कि दिन और रात चोदने और चुदवाने की टक्कर में बाजी कौन जीतता है.
इसी वक्त सरोज उठी और वहां पहुंची जहां मै अपने ट्राउज़र को पहनता खड़ा था. इससे पहले कि मै कुछ समझ पाता वह मेरे पांव के पास घुटनों के बल बैठ गई. झपटकर ट्राउज़र को एक ओर फेंका और अपनी मुट्ठी को मुट्ठी में घेर सरोज रानी ने मेरे लौड़े की मुन्डी को होठों के बीच निगल लिया.मेरा संकोच अब टूट गया.सरोज का चुस्त बदन, उसके रसभरे होठ, और नुकीली चूचियों वाले कोमल पहाड़ो से गुजरता हुआ मैं जल्द से जल्द उसकी गुलाबी चूत से खेलना चाहता था, जो मेरी टक्कर की थी.
स्वाति ने देखा. अंदर जाती-जाती वह बोली कि अभी शुरू मत करना तुम लोग. मै भी आ रही हूं. अकेले-अकेले नहीं,..तीनों मिलकर खेलेंगे तो मजा आएगा.
********************************************************************************
________________________________________
(घटनाएं और पात्र महज काल्पनिक फंतासी से रचित हैं.इनका किन्ही जीवित या अजीवित से कोई लेना देना नहीं है)
_________________________________________________________________
मेरा मन तो कर रहा था कि सरोज की गुलाबी नरम चूत मै फ़ौरन अपने भूखे लौड़े को पेलकर चोद डालूं लेकिन उसकी जोरदार छातियों को कसकर झिंझोड़ते हुए नकली गुस्से से मैने कहा- साली सरोज तू फौरन जा. पहले तेल लेकर आ और अपनी मालकिन सखी को राहत दे. फिर तू देखना कि कैसा मज़ा चखाता हूं तुझे बाद में."
सरोज समझ गई थी कि मजा चखाने का क्या मतलब था. स्वाति की आंख से बचने वह यूं झुकी जैसे वह स्वाति की दुखती चूत का मुआयना कर रही है फिर सिर को पलटाकर गप्प से मेरे लौड़े को होठों मे निगलने के बाद लौड़े को मुठ्ठी से हिलाकर वह बिस्तर छोड़कर आगे बढ़ी - "लाती हूं तेल मैं, लेकिन याद रखना कि मैं भी हूं."
" जा न साली. तेरे ही कहने पर तो आज मैं गलती कर बैठी."-स्वाति चिल्लाई.
सरोज बादाम के तेल की शीशी उठा लई थी.
" दीदी, जरा लेटो ना तब तो" -वह बोली.
स्वाति के लेटते-लेटते ही चमकती आंखों से मेरी तरफ़ देखा और आंख मार दी.
"दीदी घुटने तो मोड़ो जरा" स्वाति से सरोज बोली.
स्वाति ने जैसे ही घुटने मोड़े थे कि उसकी खूबसूरत पतली टांगों के बीच से जगह बनाता मेरा लौड़ा फिर उसकी चूत पर पिल पड़ा.
" फिर चालाकी ..? नहीं प्लीज़"- कहती स्वाति ने घुटनों को सटाकर जांघों को सिकोड़ना चाहा.इस बार सरोज ने साथ दिया. वह स्वाति की मुलायम और मझोली छातियों पर बिछ गई और उसके गालों पर गाल टिकाती बोली - ना मेरी रानी.. अच्छे बच्चे मान जाते हैं.तेरी किस्मत कि इतना अच्छा लौड़ा मिल रहा है मेरी रानी. अब नखरा मत कर. बोल, नहीं तो मै तेरे प्यारे के लन्ड को छीनकर अभी तेरे सामने ही अपनी चूत की तिजोरी में डालकर रख लूं."
सरोज के मनाते-मनाते स्वाति की बारीक फांक में मेरे लौड़े का मुंड फिर धंस चला. तेल से मुहाने में तो चिकनाई आ गई थी ,लेकिन आगे फिर घाटी इतनी संकरी थी कि लौड़ा फंस रहा था.मुन्डी की गांठ के धक्के से फिर स्वाति सिसकियां भर रही थी -" हाय.., अब कैसे होगा रे. मै डरती हूं कि कैसे संभलूंगी."
मैने झुकी हुई सरोज की छाती के एक स्तन को थामा और उसके पुट्ठे पर चिकोटी काटी. वह समझ गई थी.उसने मेरे लौड़े और स्वाति की चूत के ढक्कन यानी घुंघराली मुलायम झांटों के बीच के ओठों को अपनी उंगली से फैलाते तेल की पतली धार से चूत और लौड़े खूब नहला दिया. मैने अपनी उंगलियों में लौड़े की गांठ को थाम हौले-हौले स्वाति की चूत की सुरंग के मुहाने की सैर कराई और फिर अपने पुट्ठे ऊपर उठाते जोर की ठोकर मार घप्प से एक बार मे ही पूरी लम्बाई में लौड़े को ऐसा पेला कि स्वाति की चूत उसे -"आह मर गई रे मार डाला" कहती निगल गई.
इस बार स्वाति पर रिएक्शन यह हुआ कि मुझसे मुझे हटाने की जगह वह नाजुक लता की तरह और कसकर मुझसे लिपटकर जकझोरने लगी.
हमने सरोज को इशारा किया कि वह अब चली जाए, लेकिन वह -"देखने दो प्लीज़" कहती खड़ी रही.
स्वाति को बाहों मे लिपटाये चूमते मैने उसकी चुदाई शुरू कर दी. शुरू-शुरू में लौड़ा इतनी नजाकत के साथ पूरे का पूरा इस तरह हौले-हौले बाहर आकर चूत को अंदर तक ठेलता रहा कि हर स्ट्रोक की गुदगुदी के साथ एक-दूसरे की आंखों में झांकते, होठों से होंठों को निगलते हम दोनों एक- दूसरे से-
" आह कितना अच्छा लग रहा है",...."और ये लो",..."और दो",... "आह प्यारे तुम कितने अच्छे हो",..".मेरी प्यारी स्वाती तुम्हरी चूत का जवाब नहीं,"...."आह तुम्हारी हिरनी जैसी आंखें ..इन्हें जी भर देखने दो रानी"..."आह मेरे प्यारे आज चूस डालो मुझको"...."अब छोड़ो मत राजा..चोदते रहो..चोदते रहो". कहते चुदाई के एक-एक पल के साथ स्वर्ग की सैर करते रहे.
कभी स्वाति मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में थामकर प्यार से चूमती जाती,.. कभी मेरी हथेलियों मे उंगलियों से उंगलियां फंसाये प्यार में पंजे लड़ाती,..कभी मेरी आंखों, माथे या कानों को होठों में लपक लेती और कभी कसकर मेरे चेहरे को अपने कपोलों से चिपटाकर जकड़ लेती.
मैने भी बीच-बीच में स्वाति की चूत के रस मे नहाए अपने लंड को बाहर निकालकर बड़े प्यार से एक-एक करके उसके तने हुए स्तनों की,उनपर सजे भूरे-भूरे अंगूरों की,खूबसूरत काली आंखों और पलकों की, माथे और उसपर खेलती जुल्फ़ों की,धारदार पतली नाक और रसीले ओठों की, कमर की संकरी घाटी और उसके बीच खुदी नन्ही बावली की, पतले-पतले हाथों, कलाइयों और बाहों की, च्किनी जांघों और लम्बी टांगों की सैर कराई. हर स्पाट पर कभी मुट्ठी में जकड़कर चाटते हुए और कभी प्यार से उंगलियों को फिराते हुए, और कभी होठों से चूम-चूम कर बड़ी दीवानगी के साथ सारे अंगों से वह अप्नने प्यारे दोस्त को इन्ट्रोड्यूस कराती रही.जब चूत रानी बौखलाकर आवाज देने लगती तो "राजा चलो अब अंदर ना प्लीज़.वो अकेली तरस रही है" कहती अपने प्यारे लंड यार को स्वाति फिर से उसकी चिकनी कलाई थामकर संकरी घाटी की सुरंग में ठेल देती थी .
एक किनारे लार टपकती नज़रों से बिस्तर को ताकती सरोज " हाय..हाय अब मैं कहां जाऊं.. इस अपनी प्यासी चूत का क्या कर डालूं.."कहती छातियों को मसलती भूरी झांटों में रिसती चूत को अपनी उंगलियों से कुरेद रही थी.मेरा दिल आवाज दे-दे कर मुझे पुकारती सरोज की रिसी जा रही चूत पर पसीजा पड़ रहा था.जी करता था कि सुपरफ़ास्ट की स्पीड से स्वाति की सुरंग में पिस्टन की तरह धंसकर तेज रफ़्तार से भागते लौड़े पर ब्रेक दूं और सरोज की भाफ छोड़ती तैयार इंजन पर चढ़ बैठूं पर वह मुमकिन नहीं था क्यों कि स्वाति जल्दी से जल्दी अपने मुकाम पर पहुंचने के मूड में आ गई थी. उसके नितंब नीचे से ऊपर उछल-उछल कर लम्बू मियां को टक्कर दे रहे थे.
नसों में खून तेजी से दौड़ने लगा था और लगातार आगे बढ़ते लंबूजी के हर स्ट्रोक के साथ दिल की धड़कनें बढ़ रही थीं.ऊपर से मैं और नीचे से स्वाति दोनों ही एक दूसरे को धक्का देते जोरदार टक्कर में भिड़ रहे थे. दोनों की सांसें तेज हो रही थीं.सांसों की रफ़्तार के साथ-साथ मेर तन्नाया लौड़ा और स्वाति की भाफ़ छोड़ती गरमाई हुई चूत जोश में आ-आकर दीवानगी मे खूब तेजी के साथ "घपाघप-...चपाचप-...भकाभक-...छपाछप" की आवाज में न समेटी जा रही खुशी को उजागर किये जा रहे थे.
स्वाति और मेरे होठों पर यह जोश " आह मै कितनी खुश हूं मैं आज"......"मारो,मेरे राजा ठोंक डालो जमकर इसे"....."चोदो"....."चोदे जाओ"....."और जोर से"....."वाह क्या जोरदार स्ट्रोक है"..........."शाब्बास...आह"....."फाड़ डालो"......"हाय-आ...आय, रे"..."हाअ..य्य.ये. .....कितना प्यारा जोड़ा है हमारा"...."आह मेरे प्यारे.."...कितना जोरदार फ़िट है..एकदम टाइट"....."उड़ा डालो अपनी इस लाड़ली चूत के चिथड़े आज राजा"...."लो मेरी प्यारी सम्भालो इसे"..."लो और जोर से"...."वाह प्यारी चूतरानी.....कितनी कोमाल हो तुम" "रानी.....मेरे लौड़े को तुमने दीवाना बना डाला प्यारी"....."लो प्यारी...लीलती जाओ आज"..."शाब्बास, लो राजा,.. ये मेरी तरफ़ से लो अब..." की लगातार तेज होती आवाज़ में बदहवाश हो रहा था.
आखिर वो पल आया जब मेरा लौड़ा ऐसी तेजी से स्वाति की चूत पर टूटा कि हाथ से मेरे गुस्साये लौड़े को थामकर रोकती वह चीखने लगी..." बस करो....बस करो प्लीज़....रोको,..रोको ना, नहीं तो मै मर जाऊंगी...मर गई रे ...फाड़ डला आज तो....बस करो प्लीज़.." मेरी प्यारी श्यामा की नाजुक छरहरी देह लौड़े की चोट से बदहवाश होती लहरा-लहराकर हिल रही थी और मुझे रोकने वह उठ-उठकर बैठी पड़ रही थी.
ठीक इसी वक्त अपनी साड़ी-चोली एक तरफ फेंककर सरोज रानी भी झपटकर स्वाति और मुझपर सवार हो गई थी. कभी स्वाति और कभी मेरे बदन को चूमती जाती सरोज बड़बड़ाती हुई न जाने क्या-क्या बातें किये जा रही थी.
कभी स्वाति के कपोलों को थपथपाती उसपर अपने गाल सटाये वह बुदबुदाती-" हाय मेरी नाजुक छड़ी...चुद गई रे आज..."..." हाय-हाय कैसा कसकर चोदा है रे निरदयी ने...बिलकुल फाड़ डाला रे मेरी सांवली सखी की कोमल चूत को.."...." हाय मेरी छ्बीली...तूने तो चूत में तो कभी उंगली भी घुसने ना दी मेरी कली, आज इत्ता बड़ा लौड़ा कैसे निगला होगा मेरी बन्नो"...."हाय री स्वाती कैसा लगा रह होगा री तुझको भला आज की इस भयंकर चोदवाई मे."...."हाय-हाय,.. काश मै तेरी जगह चुदवा लेती री..तेरी चूत तो छितरा-छितरा डली रे आज इस जबरदस्त लौड़े ने"..."आह..आह मेरी सांवरी...काश चुदने से पहले मेरी चूत और तेरी चूत भी टकरा-टकरा कर गले मिल लेते मेरी सखी."... "हाय रानी,..अब तू उठ भर जा फिर मेरी चूत तेरी चूत को रगड़ेगी जरूर".. "मै तो तरस कर रह गई रे.."
सरोज वह सब कहती जाती और कभी अपनी शानदार छातियों को मेरी पीठ पर चिपका कर मसलती मुझसे कहती- " छोड़ दो..अब मेरी स्वाती को.. छोड़ दो मेरे राजा. उसकी नाजुक देह को छोड़ दो प्यारे. खूब मसल डाला रे मेरी नाजुक कली को...छोड़ दो ना अब छोड़ भी दो...जरा तो सोचो कि छोटी सी सूराख का तुम्हारे लंड ने क्या बुरा हाल कर दिया होगा.."
मैने स्वाति का कंधा अपने हाथों से कसकर दबा रखा था ताकि चुदाई की आखिरी चोटों से घबराकर वह कोई गड़बड़ न कर बैठे. प्यारी स्वाति की नाज़ुक टांगें मेरे कन्धे पर चढ़ी थीं. उसकी चूत की फांक खुल चली थी और रस से भीग रही थी फिर भी संकरी और टाइट थी. इस वक्त लौड़ा अच्छी दूरी तक पीछे जाता और फिर बाहर से पक्का निशाना साधकर स्वाति की चूत पर टूट्ता पूरी गहराई को माप रहा था.टक्कर ऐसी तूफानी चाल से हो रही थी कि चूत और लौड़े के साथ जांघों के अन्दरूनी पठार भी "चटाचट" और "छ्पाक-छपाक" की आवाज करते टकरा रहे थे. चूत की संकरी सुराख मे लंड के घुसते-निकलते "फ़ुक्क-फुक्क" की आवाज़ बनती और उसके साथ ही पठार टकराकर "चटाक-छपाक" करके चीखते थे.
उधर सरोज बड़बड़ा रही थी और अपनी "हाय-हाय" करती सखी को मुझसे अलग करने के चक्कर में थी और इधर उसकी ओर से बेखबार स्वाति और मै चुदवाते और चोदते हिमालय की चोटियों की तरफ बढ़ रहे थे.स्वाति और मेरी छातियों के बीच आड़ी होकर सरोज चित्त पड़ी थी. स्वाति की चूत "मार डाला रे" की धुन में चीखती हुई भी अपने को सिकोड़ती और फैलाती खूब मजे ले रही थी. स्वाति आहें भरती " चोदो राजा" ..."और जोर से आह".."फाड़ डालो आज मेरी चूत" कहती लौड़े के हर वार को लपक-लपक कर झेलती जा रही थी, लेकिन सरोज के चढ़ जाने से उसका चेहरा छिप गया था.मेरा झुका मुंह इसीलिये अब सरोज के चेहरे से चिपका होठों से भिड़ने लगा था. एक तरफ़ स्वाति की कड़क चूत थी तो दूसरी तरफ सरोज की गदराई छातियां और रसीले होठ थे. दोनों मिलकर मुझे दीवाना किये जा रहे थे.मेरे पांव का अंगूठा सरोज की खुली चूत से खेलने लगा था.
स्वाति बोल रही थी- "धीरे राजा...तुम्हारी चुदाई की जबरदस्त चोट से तो मेरी जान निकली जा रही है.."
"सह लो मेरी प्यारी छ्बीली.ऐसी प्यारी चोट के लिये फिर तुम तरस जाओगी और मै भी ऐसी प्यारी चूत कहं पाऊंगा"...."बस मेरी रानी,...मेरी प्यारी स्वाती...बस ये आखरी झटका" .."बस ये लो"...."लेती जाओ मेरी रानी.".."लो बस ये हो गया" कहता मेल ट्रेन की तेजी से"फकाफक...फकाफक" चोदता मैं उसे उस स्टेशन तक ले आया जहां बिजली की सनसनी से मेरा प्रचन्ड लौड़ा और स्वाति की रसीली चूत दोनों थरथराने लगे. दोनो के दोनो आपस में कसकर लिपटे हुए एक-एक कर बरसती फुहारों से नहा-नहा कर भीग गये. इन फुहारों के समय स्वाति और मैं आपस मे लिपटकर एक-देह और एक-प्राण हो गये थे. हम दोनों को पता नहीं चला कि हम उस वक्त कहां गुम हो गये थे.
बहुत देर तक हम तीनों आपस में चिपके हुए बेहोश पड़े रहे. जब अलग हुए तो सरोज स्वाति पर मेरे समने ही चढ़ बैठी और चूम-चूमकर उसे उसकी चुदाई की हिम्मत और स्टेमिना के लिये बधाई देने लगी.
सरोज ने मेरी तरफ नज़र फ़ेंकी और कहा कि "राजाजी, जाइयो मत अभी.अपना वादा याद करो. अब मेरी बारी है." स्वाति से वह बोली कि तुम बुरा मत मानन मेरी रानी. चुदवाने मे जितना मजा है उससे कम मजा इसके देखने में नहीं है.
स्वाति ने शर्त रखी कि प्यारे, इसका दिल मत तोड़ो, लेकिन आज दिन और रात अब आप को यहीं रहना है. मेरी चूत की प्यास आप ने भड़का दी है. चूत फट ही गई तो डर कैसा. देखूं कि दिन और रात चोदने और चुदवाने की टक्कर में बाजी कौन जीतता है.
इसी वक्त सरोज उठी और वहां पहुंची जहां मै अपने ट्राउज़र को पहनता खड़ा था. इससे पहले कि मै कुछ समझ पाता वह मेरे पांव के पास घुटनों के बल बैठ गई. झपटकर ट्राउज़र को एक ओर फेंका और अपनी मुट्ठी को मुट्ठी में घेर सरोज रानी ने मेरे लौड़े की मुन्डी को होठों के बीच निगल लिया.मेरा संकोच अब टूट गया.सरोज का चुस्त बदन, उसके रसभरे होठ, और नुकीली चूचियों वाले कोमल पहाड़ो से गुजरता हुआ मैं जल्द से जल्द उसकी गुलाबी चूत से खेलना चाहता था, जो मेरी टक्कर की थी.
स्वाति ने देखा. अंदर जाती-जाती वह बोली कि अभी शुरू मत करना तुम लोग. मै भी आ रही हूं. अकेले-अकेले नहीं,..तीनों मिलकर खेलेंगे तो मजा आएगा.
********************************************************************************
All writing remains the property of the author. Don't use it for any purpose without their permission.
likes 0
reading list entries 0
comments 0
reads 815
Commenting Preference:
The author is looking for friendly feedback.