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MADHUNISHA SAMWAAD : PART-II : AAYAA JYOON TOOFAN JHATAK UF BADAN CHADHAA WAH AAYAA
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मधुनिशा-रति संवाद- भाग दो
(PREMONMAYEE SAEAS RATI SARITA-157)
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आया ज्यूं तूफ़ान झटक उफ़ चढ़ा बदन वह छाया
चमकी बिजुरी पोर-पोर तोड़े अंग-अंग चटकाया
मैं कसमस-कस कर हारी कह “प्लीज़ छोड़ भी दो ना
सच कहती तन दुखे बात मानो मुझको चोदो ना”
फिरा गाल पर गाल अधर धर अधर चूमता आया
घूंघट उठा निहार नयन धर छाती से लिपटाया
बम्म लाल फूला अकड़ा देखा बाहर आया
फटी आँख साँसें अटकीं जी धड़क-धड़क घबराया
औचक चढ़ा नशा ऐसा फूली साँसें रह आईं
रहा न होश गया धीरज लिपटी मैं अंग समाई
रहा आया जो खड़ा लंड सन ठिठक चूत में अटका
चल आया फिर सरपट मारे चूत भका-भक झटका
खड़ा फाडता कसे गज़ब बुर सरसर लंड समाया
हुआ न जो पहले घंटों में इक-पल में हो आया
कहूँ आह उस पल की क्या सखि समां गज़ब का छाया
पोर-पोर अंग-अंग उतरा सखि जैसे स्वर्ग समाया
लिये ‘भकाभक’ फिर धुन मगन भिड़े हम दोनों टूटे
होता रहा बाद क्या होश न रहा लंड के लूटे
पोर-पोर रसभरी उफनती टांगें लपट फिसलतीं
थप्प-थपाथप भर उछाह जंघाएँ ठुकी पिघलतीं
जकड घेर कस पीठ भुजाएं बाँधे भींच दबातीं
चोंच निकाले फूल छातियाँ गुदगुद भिड़ टकरातीं
“रहे जीत लौड़ा ‘गच-गच’ चोदे” बुर खूब मनाती
लंड मनाता “लिए ‘गप्प-गप’ चुद बुर रहे छकाती”
झटके रगड़ कपोल केस मुख अधर गूँथ उरझाए
अपलक रम इक-दूजे डूब मदिर आँखें रम आए
जोड़ा अटक फंसा भूला सुध-बुध जग भूली आई
कसर निकाले सारी जमकर जोड़ी रमी चुदाई
‘आह..आह’ कर मुंदी पलक ले लंड चूत मैं हारी
लगी होड़ बुर-लंड ‘खब्ब-खब’ बहा चुदन-रस भारी
[b](ग्यारह)
(रति-रण-भिडंत)
कुटी चूत पटके लौड़े ने तोड़े अंग-अंग मारा
उड़ी चूत चिथड़े जितने री और लगा वह प्यारा
खड़ा पटक बुर फाड़ टूटता वह मैं कसे फंसाती
उछले उसके लपक दौड़ सरपट मैं रही समाती
टोह-टोह पटके बुर का कोना-कोना झारा री
कूट रगड़ता चूत फाड़ तोड़े अंग-अंग मारा री
उधड़ उड़ी बुर दुखी टांग टूटती कमर रह आई
पिये लंड का नशा मगन पर चुदती मैं न अघाई
आहें भर-भर ठोक छिला वह ठुक बुर चीखी आई
‘ले..ले’ कह पेले वह चुद मैं ‘और..और’ कह आई
लगी होड़ थी मानो किसको कौन रहे धर लूटा
लण्ड चूत हठ किये लड़े टकराते जोड़ न टूटा
घुस-घुस चढ़े हुमक इक-दूजे ठोक लड़े यूं दौड़े
मानो मिले न दिन दूजा निबटा तमाम रख छोड़ें
चढ़ा नशा इक बार सखी जो उतर न फिर वह पाया
खुली छोड़ बुर खींच-खींच लौड़ा मैंने चुदवाया
(बारह)
सघन संभोग चित्रावली
छनक छन्न बाजी करधनिया ठुनक-ठुनक कटि डोली
लहराती ‘लप..लप’ पुट्ठे बुर ‘और..और दे’ बोली
भिड़ी छातियाँ मचल-मसल धंस रगड़े कस टकरातीं
फँस अंगुलियां कस पंजे इक दूजे पटक दबातीं
रह-रह उठता ज्वार उठा वह पटक ‘घप्प’ बुर जाता
कर मदहोश ‘भका-भक’ ठोके बुर जितना वह भाता
रमी आँख में आँख निहारे अपलक डूबी जाती
मची होड़ इक-दूजे लेने लगी हुई थी बाजी
रह-रह उलझ अधर रस पीते इक-दूजे पर टूटे
भिड़-भिड़ टांगें लड़ीं खूब फिसली जांघें रस लूटे
लूटा जो इक बार दौर पर दौर चला फिर थम-थम
चुद-चुद हुई निहाल चूत सखि लेती उसमें रम-रम
बजती रही संग ‘भक-भक’ ठोके पैजनिया छुन-छुन
पलंग हिला उछली मैं लिये ‘रबा-रब’ रमती धुन सुन
आह गज़ब क्या समां बंधा री हाय बताऊँ कैसे
लय-सुर-ताल रमी डूबी बुर लंड चोदता जैसे
‘पुक-पुक’ खूब बजी बुर ठुकती चुदी लंड से धुन-धुन
जोड़ी जमी खूब थी खोए होश मगन री सुन-सुन
खूब ‘खबा-खब’ मची लंड साने रस बुर कस आई
ठुकती बुर संग पैजनिया बज छुन-छुन रही लुभाई
(तेरह)
(भोर भये दरवज्जे थप-थप)
चला भोर तक दौर मची री ‘गच..गच’खूब चुदाई
भिड़े जंग में गज़ब चूत-लौड़े में थी ठान आई
जैसे चढ़ा नशा कोई बुर लिये ‘खबा-खब’ आया
रह-रह चढ़ा चढ़े दिन तक वह रहा चूत पर छाया
यूं कह आह भरे तन तोड़े दुलहन सखि अंगडाई
निकल चुभीं चूचियां गज़ब छाती गुलगुल तन आई
बोली रहा फाडता बुर वह रही मगन मैं लीले
उठा-पटकता वह मारे कस मैं रगड़े थी छीले
जी न भरा था होश डुबाता रमा खेल था ‘खब-खब’
ऊह बताऊँ क्या री तभी द्वार सुन आई ‘थप-थप’
किये चुहल बोली ननदी “भैया-भाभी जग जाओ
राह देखते सब बैठे नीचे हैं मत तरसाओ
बना गरम जलपान देर से रक्खा नीचे ढक्का
फिर कर लेना काम बाद में बचा अभी जो रक्खा”
सुना खिलखिलाती बतियातीं सब को हौले-हौले
टोक रही थी दूजी “साली बोल किये सुर हौले”
रहीं खिलखिला आईं कुछ इक बोली “जतन करो री
झाँक देख लें मज़ा ज़रा किस पर है कौन चढ़ा री”
“हटो न खेल करो” कह-कह भाभी बरजे थी जाती
“लल्ला-लल्ली उठो” कहे द्वारे आवाज़ लगाती
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मधुनिशा-रति संवाद- भाग दो
(PREMONMAYEE SAEAS RATI SARITA-157)
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आया ज्यूं तूफ़ान झटक उफ़ चढ़ा बदन वह छाया
चमकी बिजुरी पोर-पोर तोड़े अंग-अंग चटकाया
मैं कसमस-कस कर हारी कह “प्लीज़ छोड़ भी दो ना
सच कहती तन दुखे बात मानो मुझको चोदो ना”
फिरा गाल पर गाल अधर धर अधर चूमता आया
घूंघट उठा निहार नयन धर छाती से लिपटाया
बम्म लाल फूला अकड़ा देखा बाहर आया
फटी आँख साँसें अटकीं जी धड़क-धड़क घबराया
औचक चढ़ा नशा ऐसा फूली साँसें रह आईं
रहा न होश गया धीरज लिपटी मैं अंग समाई
रहा आया जो खड़ा लंड सन ठिठक चूत में अटका
चल आया फिर सरपट मारे चूत भका-भक झटका
खड़ा फाडता कसे गज़ब बुर सरसर लंड समाया
हुआ न जो पहले घंटों में इक-पल में हो आया
कहूँ आह उस पल की क्या सखि समां गज़ब का छाया
पोर-पोर अंग-अंग उतरा सखि जैसे स्वर्ग समाया
लिये ‘भकाभक’ फिर धुन मगन भिड़े हम दोनों टूटे
होता रहा बाद क्या होश न रहा लंड के लूटे
पोर-पोर रसभरी उफनती टांगें लपट फिसलतीं
थप्प-थपाथप भर उछाह जंघाएँ ठुकी पिघलतीं
जकड घेर कस पीठ भुजाएं बाँधे भींच दबातीं
चोंच निकाले फूल छातियाँ गुदगुद भिड़ टकरातीं
“रहे जीत लौड़ा ‘गच-गच’ चोदे” बुर खूब मनाती
लंड मनाता “लिए ‘गप्प-गप’ चुद बुर रहे छकाती”
झटके रगड़ कपोल केस मुख अधर गूँथ उरझाए
अपलक रम इक-दूजे डूब मदिर आँखें रम आए
जोड़ा अटक फंसा भूला सुध-बुध जग भूली आई
कसर निकाले सारी जमकर जोड़ी रमी चुदाई
‘आह..आह’ कर मुंदी पलक ले लंड चूत मैं हारी
लगी होड़ बुर-लंड ‘खब्ब-खब’ बहा चुदन-रस भारी
[b](ग्यारह)
(रति-रण-भिडंत)
कुटी चूत पटके लौड़े ने तोड़े अंग-अंग मारा
उड़ी चूत चिथड़े जितने री और लगा वह प्यारा
खड़ा पटक बुर फाड़ टूटता वह मैं कसे फंसाती
उछले उसके लपक दौड़ सरपट मैं रही समाती
टोह-टोह पटके बुर का कोना-कोना झारा री
कूट रगड़ता चूत फाड़ तोड़े अंग-अंग मारा री
उधड़ उड़ी बुर दुखी टांग टूटती कमर रह आई
पिये लंड का नशा मगन पर चुदती मैं न अघाई
आहें भर-भर ठोक छिला वह ठुक बुर चीखी आई
‘ले..ले’ कह पेले वह चुद मैं ‘और..और’ कह आई
लगी होड़ थी मानो किसको कौन रहे धर लूटा
लण्ड चूत हठ किये लड़े टकराते जोड़ न टूटा
घुस-घुस चढ़े हुमक इक-दूजे ठोक लड़े यूं दौड़े
मानो मिले न दिन दूजा निबटा तमाम रख छोड़ें
चढ़ा नशा इक बार सखी जो उतर न फिर वह पाया
खुली छोड़ बुर खींच-खींच लौड़ा मैंने चुदवाया
(बारह)
सघन संभोग चित्रावली
छनक छन्न बाजी करधनिया ठुनक-ठुनक कटि डोली
लहराती ‘लप..लप’ पुट्ठे बुर ‘और..और दे’ बोली
भिड़ी छातियाँ मचल-मसल धंस रगड़े कस टकरातीं
फँस अंगुलियां कस पंजे इक दूजे पटक दबातीं
रह-रह उठता ज्वार उठा वह पटक ‘घप्प’ बुर जाता
कर मदहोश ‘भका-भक’ ठोके बुर जितना वह भाता
रमी आँख में आँख निहारे अपलक डूबी जाती
मची होड़ इक-दूजे लेने लगी हुई थी बाजी
रह-रह उलझ अधर रस पीते इक-दूजे पर टूटे
भिड़-भिड़ टांगें लड़ीं खूब फिसली जांघें रस लूटे
लूटा जो इक बार दौर पर दौर चला फिर थम-थम
चुद-चुद हुई निहाल चूत सखि लेती उसमें रम-रम
बजती रही संग ‘भक-भक’ ठोके पैजनिया छुन-छुन
पलंग हिला उछली मैं लिये ‘रबा-रब’ रमती धुन सुन
आह गज़ब क्या समां बंधा री हाय बताऊँ कैसे
लय-सुर-ताल रमी डूबी बुर लंड चोदता जैसे
‘पुक-पुक’ खूब बजी बुर ठुकती चुदी लंड से धुन-धुन
जोड़ी जमी खूब थी खोए होश मगन री सुन-सुन
खूब ‘खबा-खब’ मची लंड साने रस बुर कस आई
ठुकती बुर संग पैजनिया बज छुन-छुन रही लुभाई
(तेरह)
(भोर भये दरवज्जे थप-थप)
चला भोर तक दौर मची री ‘गच..गच’खूब चुदाई
भिड़े जंग में गज़ब चूत-लौड़े में थी ठान आई
जैसे चढ़ा नशा कोई बुर लिये ‘खबा-खब’ आया
रह-रह चढ़ा चढ़े दिन तक वह रहा चूत पर छाया
यूं कह आह भरे तन तोड़े दुलहन सखि अंगडाई
निकल चुभीं चूचियां गज़ब छाती गुलगुल तन आई
बोली रहा फाडता बुर वह रही मगन मैं लीले
उठा-पटकता वह मारे कस मैं रगड़े थी छीले
जी न भरा था होश डुबाता रमा खेल था ‘खब-खब’
ऊह बताऊँ क्या री तभी द्वार सुन आई ‘थप-थप’
किये चुहल बोली ननदी “भैया-भाभी जग जाओ
राह देखते सब बैठे नीचे हैं मत तरसाओ
बना गरम जलपान देर से रक्खा नीचे ढक्का
फिर कर लेना काम बाद में बचा अभी जो रक्खा”
सुना खिलखिलाती बतियातीं सब को हौले-हौले
टोक रही थी दूजी “साली बोल किये सुर हौले”
रहीं खिलखिला आईं कुछ इक बोली “जतन करो री
झाँक देख लें मज़ा ज़रा किस पर है कौन चढ़ा री”
“हटो न खेल करो” कह-कह भाभी बरजे थी जाती
“लल्ला-लल्ली उठो” कहे द्वारे आवाज़ लगाती
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