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ROOP NA RANG KIYE JHAGADE SANWARI WAH NIT NIT AATEE
रूप न रंग किये झगड़े साँवरि वह लड़ लड़ आती
(premonmayee saras rati sarita)
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रूप न रंग किये झगड़े सांवरी वह लड़ लड़ आती
जितना मरता उस पर मैं उतना वह रही सताती
हुआ तंग खीझे उसको रख दूर रहे मैं आया
किये बेरुखी छोड़े तकना फेर नज़र तरसाया
जाने हुआ असर क्या इक दिन रही निहारे आई
मुख उदास बोली हौले “हा रूठे क्यों हरजाई
समझो बात न दिल की मुझको क्यों रह चले भुलाए
वह थी बस इक अदा छेड़ेने तुम क्यों समझ न पाए
रोज तके आते थे चुप चुप मुझे देख ललचाए
रही पिघलती मैं बुद्धू तुम रहे मौन सकुचाए
खीझी ‘हाय मिलो लो मुझको’ राह तके मैं तरसी
तुमको पत्थर पा आखिर मैं छेड़ तुम्हें रह बरसी”
बोला मैं ‘उफ़ काश बात यह पहले जाने आता
देख तुम्हारे तेवर केवल मैं था रूठा जाता
देख तुम्हें जाता नित मन मन मैं उछला रह आता
लंड खड़ा नित बहा लार तक लेने बुर ललचाता
जैसीं तुम मुझको पसंद थीं लगता पटके आऊँ
गज़ब कसी बुर श्यामा लंड दिये मैं जोड़ बनाऊँ’
आज तुम्हारा दिल जाने तुमसे कह यह मैं आया
गर तुम हो नाराज़ सज़ा दे लो मुझको मनभाया”
बोली वह “हा जोग मिलन का मुश्किल से यह आया
करो न यूं अब बात मुहूरत मिलाने का जब आया
राह चले यूं बात न ठीक हुआ तय गुपचुप मिलने
रह बेख़ौफ़ मिले आखिर दिल से दिल टकराए खिलने
रही अटक मिल जुबाँ धड़क धड़-धड़ धड़के दिल आए
उफनी साँसें लपट कस बदन अधर गूँथ भिड आए
‘उफ़ उफ़ रहा न जाए’ बोली वह “कर जो करना तुझको
लेती तुझे भिडूँ मैं आ चख रस निचोड़ तू मुझको”
कंप लहराए झपट बदन कपड़े रख फाड़ उतारे
टिक दीवार रही वह बैठी आई जांघ पसारे
फैला टांग पसारे धर कटि रख खींचे मैं आये
खड़े लंड बुर फाँस चढ़ा उसको मैं गोद बिठाए
‘ऊह गज़ब रे मरी आज बुर खड़ी चढ़ी मर आई
‘आह आह आ छोड़ न अब’ कह कसे लंड वह आई
चढ़ी लंड बुर आगे पीछे चुदी लहरती झूली
फुरक मगन ठुक लिये लंड उछली उफनी रह फूली
धंसे लंड बुर जबर अधर कस धरे निचोड़े आए
सन्नाटा मुख बोल न भिड़े ‘भकाभक’ चोदे आए
कस दाबे मसके छाती लड़ लड़े मार टकराए
झरे छलछला कस चोदे ढुरके रह लपट समाए
रही फूट इक साथ जुबाँ “उफ़ तुमने बहुत सताया
धुन्धुआए जितना सुलगा मन छके आज कस पाया”
मिटा बैर चुद मगन शिकायत हुई दूर यूं आई
किये पहल ललचाई मंगे लंड चुद-चुद वह आई
चस्का यूं फिर ‘हाय चलो ना’ कह खोले बुर आती
लपक झपट धर लंड लिये बुर गपक ‘गप्प..गप’ खाती
जोड़ ठुनकती घोड़ी श्यामा कसी गज़ब बुर प्यारी
अटका लंड बीच उरु संधि गयी रह रह कर मारी
चाल ठुमक चलती नखरीली जो रहती इतराई
चढ़े लंड देती बुर वह दौड़ी घोड़ी सी आई
नखरे गए लंड में बुर बन तके राह वह आती
कर अनुहार तके मौक़ा धर लंड रही चुदवाती
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(premonmayee saras rati sarita)
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रूप न रंग किये झगड़े सांवरी वह लड़ लड़ आती
जितना मरता उस पर मैं उतना वह रही सताती
हुआ तंग खीझे उसको रख दूर रहे मैं आया
किये बेरुखी छोड़े तकना फेर नज़र तरसाया
जाने हुआ असर क्या इक दिन रही निहारे आई
मुख उदास बोली हौले “हा रूठे क्यों हरजाई
समझो बात न दिल की मुझको क्यों रह चले भुलाए
वह थी बस इक अदा छेड़ेने तुम क्यों समझ न पाए
रोज तके आते थे चुप चुप मुझे देख ललचाए
रही पिघलती मैं बुद्धू तुम रहे मौन सकुचाए
खीझी ‘हाय मिलो लो मुझको’ राह तके मैं तरसी
तुमको पत्थर पा आखिर मैं छेड़ तुम्हें रह बरसी”
बोला मैं ‘उफ़ काश बात यह पहले जाने आता
देख तुम्हारे तेवर केवल मैं था रूठा जाता
देख तुम्हें जाता नित मन मन मैं उछला रह आता
लंड खड़ा नित बहा लार तक लेने बुर ललचाता
जैसीं तुम मुझको पसंद थीं लगता पटके आऊँ
गज़ब कसी बुर श्यामा लंड दिये मैं जोड़ बनाऊँ’
आज तुम्हारा दिल जाने तुमसे कह यह मैं आया
गर तुम हो नाराज़ सज़ा दे लो मुझको मनभाया”
बोली वह “हा जोग मिलन का मुश्किल से यह आया
करो न यूं अब बात मुहूरत मिलाने का जब आया
राह चले यूं बात न ठीक हुआ तय गुपचुप मिलने
रह बेख़ौफ़ मिले आखिर दिल से दिल टकराए खिलने
रही अटक मिल जुबाँ धड़क धड़-धड़ धड़के दिल आए
उफनी साँसें लपट कस बदन अधर गूँथ भिड आए
‘उफ़ उफ़ रहा न जाए’ बोली वह “कर जो करना तुझको
लेती तुझे भिडूँ मैं आ चख रस निचोड़ तू मुझको”
कंप लहराए झपट बदन कपड़े रख फाड़ उतारे
टिक दीवार रही वह बैठी आई जांघ पसारे
फैला टांग पसारे धर कटि रख खींचे मैं आये
खड़े लंड बुर फाँस चढ़ा उसको मैं गोद बिठाए
‘ऊह गज़ब रे मरी आज बुर खड़ी चढ़ी मर आई
‘आह आह आ छोड़ न अब’ कह कसे लंड वह आई
चढ़ी लंड बुर आगे पीछे चुदी लहरती झूली
फुरक मगन ठुक लिये लंड उछली उफनी रह फूली
धंसे लंड बुर जबर अधर कस धरे निचोड़े आए
सन्नाटा मुख बोल न भिड़े ‘भकाभक’ चोदे आए
कस दाबे मसके छाती लड़ लड़े मार टकराए
झरे छलछला कस चोदे ढुरके रह लपट समाए
रही फूट इक साथ जुबाँ “उफ़ तुमने बहुत सताया
धुन्धुआए जितना सुलगा मन छके आज कस पाया”
मिटा बैर चुद मगन शिकायत हुई दूर यूं आई
किये पहल ललचाई मंगे लंड चुद-चुद वह आई
चस्का यूं फिर ‘हाय चलो ना’ कह खोले बुर आती
लपक झपट धर लंड लिये बुर गपक ‘गप्प..गप’ खाती
जोड़ ठुनकती घोड़ी श्यामा कसी गज़ब बुर प्यारी
अटका लंड बीच उरु संधि गयी रह रह कर मारी
चाल ठुमक चलती नखरीली जो रहती इतराई
चढ़े लंड देती बुर वह दौड़ी घोड़ी सी आई
नखरे गए लंड में बुर बन तके राह वह आती
कर अनुहार तके मौक़ा धर लंड रही चुदवाती
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