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Namakeen Taambaee chharharee tanvangee : wah suranginee (Part-1)

नमकीन तांबई छरहरी काया : वह सुरंगिनी (Part-I)
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(घटनाएं और पात्र महज काल्पनिक फंतासी से रचित हैं.इनका किन्ही जीवित या अजीवित से कोई लेना देना नहीं है)
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      उस दिन मुझे न जाने क्यों स्वाति की बहुत याद आ रही थी . मै जानता था कि वह आज घर में अकेली होगी क्यों कि आज छुट्टी है और उसकी सहेली हमेशा की तरह घर चली गई होगी. जी कर रहा था कि उस नमकीन तन्वंगी की तांबई छरहरी काया को मैं आज सितार की तरह बजाऊं और उसकी झन्कार में खुद को डुबा कर विसर्जित कर दूं.मेरी आंखों मे स्वाति की घुंघराली बारीक झांटों की भूरी रेखा मे छिपी उसकी संकरी सांवली चूत का वह छोटा सा छेद दिखाई पड़ता है जिसे मेरा मोटा लौड़ा फाड़ता हुआ घुसेगा और मेरी रानी की पतली कमर तक पेलता हुआ सारी छेद को ठांसकर जाम कर देगा. मैं सोचता रहा था कि वह मेरी प्यारी श्यामा स्वाति मुझे संभाल भी पाएगी या नही संभाल पाएगी. मैने फोन करके अपने दिल की बात स्वाति से कही. वह बोली-" मुझसे अब बिल्कुल सहा नहीं जा रहा है मेरे प्यारे राजा.मेरी चूत मुझसे सम्भाली नही जा रही है. मेरे ख्वाबों में दिन-रात तुम्हारा मोटा,चिकना,जोरदार लंड झूलता रहता है. उसकी याद करती मेरी चूत मे गुदगुदी की खलबली मची रहती है. सच बताऊं? मेरा बस चले तो फोन से ही पकड़कर तुम्हारे लौड़े को खींच लूं और प्यासी चूत में निगल लूं. बस चलता तो अभी उसको पकड़कर लील लूं और इतना चुदवाऊं कि अब तक की ख्वाहिश को चुदवा-चुदवा कर ब्याज सहित लेकर वसूल कर लूं. मैने अपनी नमकीन सुन्दरी से कहा कि-"हाय मेरी रानी, जी तो मेरा भी कर रहा है कि फोन से ही घसीटकर तुम्हारी चूत में इस बेकरार लौड़े को डाल दूं और चोद-चोद कर तुम्हें बेहाल कर दूं,लेकिन मै डरता हूं कि मेरी मुट्ठी की जकड़ से तुम्हारी छुइ-मुई सी कमर कहीं टूट न जाए. मेरी प्यारी स्वाति, पहले तुम खुद बताओ प्लीज़ कि तुम चुदवाने के लिये तैयार हो या नहीं ? बाद में शिकायत न करना कि मेरे लंड ने तुम्हारी नाजुक चूत को चिथड़े-चिथड़े करके उसकी शक्ल क्यों बिगाड़ डाली?"
 " हाय...अब पूछने का वक्त गया मेरे प्यारे. बस फौरन आओ और इस चूत पर टूट पड़ो प्ली़ज. मेरी चूत तो इस कदर बेकरार है कि आज वो खुद इतने चिथड़े उड़वाने को आमादा है कि या तो वो रहेगी या फिर तुम्हारा लौड़ा रहेगा.मेरे सनम आओ. हो जाने दो आज इस प्यासी चूत की टक्कर उसके लौड़े राजा से. तुम और मै दोनो देखेंगे कि आज दोनों की भिड़न्त मे कौन किसको पछाड़ता है.
     आज मै पूरे मूड में था.मेरा लौड़ा इस वक्त किसी को भी खा जाने के मूड में था. खास तौर पर सांवली स्वाती की अनछुई चूत की लुभावनी फांक को याद कर-कर के मेरा लौड़ा तन्ना-तन्नाकर अकड़ा पड़ रहा था. मौका देख फ़ौरन मैं स्वाति के पास जा धमका. वह अभी अभी नहाकर केवल अधखुली चोली और ब्लाउज पहने लेटी थी.मैने किवाड़ बंद किये और कपड़े एक ओर फेककर स्वाति पर लपका. मेरे भन्नाते लौड़े पर उस्की नज़र पड़ते ही वह दबी आवाज में चीखी- ओ...न..न्नो...प्लीज़. आज नहीं..आज नहीं......मैने तो बस मज़ाक किया था..आज नहीं...फिर कभी."
         वह कमरे में भाग रही थी और मैं उसको पकड़ने पीछे भाग रहा था. उसको आखिर मैने दबोच कर दीवार से चिपकया और बाहों मे उसकी सोलह इन्ची कमर को जकड़ उसके होठों पर टूट पड़ा."
       वह कुछ ढीली पड़ी लेकिन बुदबुदाती रही- "छोड़ो प्लीस. अभी सर्वेन्ट सरोज उधर कपड़े धो रही है."
      "धोने दो.आज मै तुम्हे चोदकर रहूंगा फिर चाहे कोई आ जाए."
       मैने स्वाति की टान्गों और पीठ को घेर बाहों में थामा और बिस्तर पर ला पटका.चोली उतार फेकी और लहंगे को उलट मैने अपने लौड़े की मुन्डी उसकी चूत के मुहाने जा टिकाई.
स्वाति ने झपट्कर लौड़े को थाम लिया और आंसू बहाती बोली -" बाप रे, इतना मोटा और लंबा .....? नो प्लीज़..छोड़ दो. अभी वो आ जाएगी."
  मैने उसकी मुट्ठी पर अपनी मुट्ठी जकड़ी और लौड़े की मुन्डी को स्वाति की चूत में ठेल दिया. सचमुच स्वाति की चूत का जवाब नहीं था.उसने अपनी चूत को अच्छा मैन्टेन किया था.रगड़ से उसकी चूत को छीलता मुन्ड घुस तो गया मगर स्वाति ने अपनी नसें इतनी जकड़ लीं कि आगे घुसना मुश्किल हो गया था. मैं उसे चूम-चूमकर और बूब्स को थाम चूचियां मसलता रास्ते पर ला रहा था और वह सिसकरियां भर रही थी.स्वाति के होटों को अपने होठों से बंद करके मैने अपने लौड़े का जोरदार धक्का उसकी चूत में दिया. इस बार वो जोर से चीख पड़ी -" आह,..मै मर गई रे.." धक्का देकर मुझे हटाने की कोशिश करती वह बोली - " बहुत प्यार करते हो.देख लिया न कि मेरी चूत अभी तुम्हे नहीं ले पा रही है. यू आर क्रूएल..छोड़ोगे नहीं, चाहे तुम्हारी प्यारी स्वाति की चूत फटकर दुखने लगे..बहुत अच्छे प्रेमी हो."
        अचानक हम दोनों की निगाह उस चेहरे पर पड़ी जो मेरे पीछे झुकी चूत और लौड़े की पुजीसन को बड़े गौर से भांप रहि थी.वह स्वाति की नौकरानी सरोज थी.
     आंखें फाड़कर चूत मे धंसे लौड़े को ताकती वह बोली-
" हाय,गजब का लौड़ा है स्वाति रानी.तभी तो कहूं कि तुम गुस्सा क्यों रही हो."
     जीभ से लार टपकाती और अपने होठों पर उंगलियां फेरती सरोज मेरी आंखों में झांकती बोली-" छोड़ दो न बाबू. हमारी स्वाती रानी खूब पढ़ी है. उमर में हमसे बड़ी है लेकिन संभालने लायक नहीं हुई है. छोड़ दो बाबू..मान लो."
     तकलीफ़ से घबराती स्वाति सरोज से बोली-"साली, खड़ी-खड़ी देख्ती है छुड़ा ना..हा...आ..आ...य्य्य..य."
    सरोज की मुट्ठी मेरे आधे धंसे लौड़े पर कस गई. मेरे गले से लिपटती वह बोली - " चलो न बाबू.इसके बदले मै तैयार हूं. आज मेरी ले कर देखो.स्वाति को पहले सीखने तो दो.वो हम लोगों को देख लेगी तो उसका भी मूड आ जाएगा. चलो प्लीज़.तुम्हार फोन सुन-सुन के , तुमको याद कर-करके बहुत दिनों से मेरी चूत तुम्हारे लिय्र मचल रही है.चलो आज अपने लौड़े के साथ मेरी चूत को खेलने दो.जब मुजह्को चोदोगे तो चुदाई का मजा देख-देखकर दीदी का भी मूड बन जाएगा. फिर देखना सारा डर चला जाएगा और दीदी की नन्ही सी चूत गीली हो-होकर खुद तुम्हारे लौड़े को लपककर ठांस लेगी."
      सरोजनी ने झटककर मेरा लंड पकड़ा और घप्प से मुंह मे ले लिया. सरोजनी गोरी थी. उमर कोई सतरह-अठारह साल की थी और कसे हुअ बदन गदराया हुआ था.वह अभी-अभी खिला हुआ ताजा फूल थी. उसकी चोली खुल चली थी और लिपटने-झिपटने से उसने मेरे बदन मे अलग किस्म की हरारत पैदा कर दी थी. उसपर बहुत दिनों से मेरी निगाह थी.मेरे जी में एक बार आया कि उसे ही पटकूं और खड़े-खड़े इन्तज़ार करते लौड़े को उसकी प्यासी चूत में डाल दूं.लेकिन सामने मेरी तन्वंगी स्वाति की अन्छुई चूत की कसावट थी जिसे ढीला करते हुए मुझे उसका ताज़ा-ताज़ा स्वाद लेना था.इस बीच बिस्तर पर स्वाति उठ बैठी थी.उसकी चूत का मुंह लौड़े की कड़क ठांस से छिल गया था और हल्का सा खून वहां चूत की रस के साथ घुल गया था.वह कभी अपनी चूत को देख रही थी और कभी मेरे उस भारी लंड को जिसने उसे छील डाला था.तब भी वह सरोज की बातें सुनती उसे घूर रही थी.वह मुझको भांप रही थी. उसकी आंखें मुझसे कह रही थीं कि अच्छा इतनी जल्दी मूड बदल गया ? देखती हूं कि तुम किसको चोदते हो - उसको या मुझको ?
      मैने पीछे से लिपटी पड़ रही सरोज को झटके से पलटकर अपने और स्वाति के बीच यूं गिराया कि उसकी छातियां और चेहरा मेरे पैरों पर बिस्तर मे था. झुककर मैने उसके चमकते कपोलों को हिलाते आंखों मे झांककर कहा -
     "साली सरोज, देखती नहीं कि मेरी प्यारी स्वाति रानी की नाजुक चूत कैसी छिल गई है?" झुके हुए ही हौले से उसकी गुदाज छातियों को प्यार से चपकते मैने आगे कहा-
  "घबरा मत तेरी तमन्ना भी मै पूरी करूंगा, लेकिन बाद में.अभी तो तेरी स्वाति दीदी की बारी है. आज तो मेरा लंड खूब पानी पी-पीकर अपनी रानी स्वाति को ही चोदेगा."
     स्वाति खुश हो गई थी . अपनी चोट खाई चूत को पुचकारना छोड़कर उसने प्यार से मेरे बालों पर हाथ फेरा और मुझे चूम लिया.


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Written by premonmayee
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