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बचपन

याद आती हैं बचपन की वो जिंदगी.. जब मिट्टी में खेल हम नहाया करते थे।
कभी शाम जलदी ढल जाती थी... कभी थक कर जल्दी हम सो जाया करते थे।  
बचपन से ही दिल दिल-फैक्  था... हर रोज़ नई आशिक़ी आजमाया करते थे।  
जब पतंग कट कर बेवफा निकलती थी... फिर तितलियों से इश्क़ लडाया करते थे।  
सूनी राहों में ढूंढते थे मंज़िल को... पथ के अंगढ पत्थरो मे खो जाया करते थे।  
होते थे हमारे अंदाज़ pilot-आना......जब ठेकरो को पानी पर झुलाया करते थे।  
अंसुनी जब छोटी भी फरियाद होती थी...... नन्हे दिल में गहरी कोई आस होती थी।  
अक्सर दुनिया से नजरे चुरा कर..... शिकायत मूर्तियों से लगाया करते थे।
Written by magichearts
Published | Edited 7th Apr 2024
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