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Cholee Phaad Nikalane Aatur Jhaanke Kasaa Kabootar

 चोली फाड़ निकलने आतुर झांके कसा कबूतर
(प्रेमोन्मयी सरस रति सरिता-२४)
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चोली फाड़ निकलने आतुर झांके कसा कबूतर
सधे हाथ फेरता मनाए चोंच पकड़ प्रिय आतुर

झीनी चोली कसा कबूतर आतुर चोंच उठाए
बड़े प्यार से थपक मसल प्रिय चुहके काटे खाए

झूम-झटकते पटक लिपटते चूम-चूम हर अंग
लप्प,छप्प,भक,ठप धुन नाचें बुर-लौड़ा संग-संग

ठोकै बुर का कोना कोना टोह-टोह नव रीति
खाती जाए लंड उछलती चूत बढ़ाती प्रीति

आग भड़कते ताब लंड की बरसत चूतहिं जाय
बुर खा-खा लौड़ा झरती पर प्यासी ही रह आय

लंड चूत का मिलन गजब का रंग चढ़ाती हाय
चोदै लंड चुदै बुर ठुकती तबहूं जिय न अघाय

झटकैं झूमैं पटकैं लिपटें चूम चूम हर अंग
‘लप्प’ ‘भक्क’ ‘पुक-पुक’ गावैं नाचैं बुर-लौड़ा संग

चूत-लंड का मिलन अनोखा डूबत सुध-बुध जाय
कौन कहां कब मदमाय रहै जब खेलन में भिड़ जायं

मचै भयंकर चुदन-चुदावन अस रस बरसत जाय
अधर अंगुरि दै काल जगत दुहुं ठिठक निहारत जायं

चोदत फूल फटै लौड़ा पर तबहुं न रहै अघात
फटीं पखुरियां दरक-दरक पर चूत न "ना” कहि पात

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Written by premonmayee
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