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XXX -Erotica Poem - Hindi

बैठा अलसाये उठ उठ रहता प्यारे तू अंगडाता
तका खेलने जोड़ संगिनी तप तप रे धुन्धुआता
थार परोसी व्यंजन इक इक तक तक लार बहाता
ललचाई तरसातीं खाने तू रे मरा भुखाता

उफ़ जादू क्या हाय विधाता बुर मोहिनी बनाई
न्यौत न्यौताती लंड खडा कर दूर पडी मुसकाई
नर पाखी पशु कीट पतंग सकल जग हारा आता
मरा तड़प चढ़ने धर मना मनाया थक रह आता

रहां सताया बुर नखरीली से तरसा तप आता  
चैन न उलट चढ़ा बुर फाड़ न चोदा जब तक जाता
कठिन साधना बुर पर जब सपड़ाई रह आती
चंगुल लंड कठोर चुदी बिन बच न रही फिर पाती

गया बार इक लंड न कुलबुल धीर रखी बुर आती  
आह भरी भर मूँद पलक रह चुदी गदगदा जाती
चबा चबाई होठ लंड कस खींच धरी धर पड़ती
छलक छलकती खुशी खलाखला धार बहाई झड़ती
Written by premonmayee
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